शनि चालीसा हिंदी मै | Shani Chalisa in Hindi

॥ दोहा ॥
श्री शनिश्चर देवजी, सुनहु श्रवण मम् टेर ।

कोटि विघ्ननाशक प्रभो, करो न मम् हित बेर ॥

॥ सोरठा ॥
तव स्तुति हे नाथ, जोरि जुगल कर करत हौं ।
करिये मोहि सनाथ, विघ्नहरन हे रवि सुव्रन ॥

॥ चौपाई ॥
शनिदेव मैं सुमिरौं तोही, विद्या बुद्धि ज्ञान दो मोही ।

तुम्हरो नाम अनेक बखानौं, क्षुद्रबुद्धि मैं जो कुछ जानौं ।

अन्तक, कोण, रौद्रय मगाऊँ, कृष्ण बभ्रु शनि सबहिं सुनाऊँ ।

पिंगल मन्दसौरि सुख दाता, हित अनहित सब जग के ज्ञाता ।

नित जपै जो नाम तुम्हारा, करहु व्याधि दुःख से निस्तारा ।

राशि विषमवस असुरन सुरनर, पन्नग शेष सहित विद्याधर ।

राजा रंक रहहिं जो नीको, पशु पक्षी वनचर सबही को ।

कानन किला शिविर सेनाकर, नाश करत सब ग्राम्य नगर भर ।

डात विघ्न सबहि के सुख में, व्याकुल होहिं पड़े सब दुःख में।

नाथ विनय तुमसे यह मेरी, करिये मोपर दया घनेरी ।

मम हित विषम राशि महँवासा, करिय न नाथ यही मम आसा ।

जो गुड़ उड़द दे बार शनीचर, तिल जव लोह अन्न धन बस्तर ।

दान दिये से होंय सुखारी, सोइ शनि सुन यह विनय हमारी।

नाथ दया तुम मोपर कीजै, कोटिक विघ्न क्षणिक महँ छीजै ।

वंदत नाथ जुगल कर जोरी, सुनहु दया कर विनती मोरी ।

कबहुँक तीरथ राज प्रयागा, सरयू तोर सहित अनुरागा ।

कबहुँ सरस्वती शुद्ध नार महँ, या कहुँ गिरी खोह कंदर महँ ।

ध्यान धरत हैं जो जोगी जनि, ताहि ध्यान महँ सूक्ष्म होहि शनि।

है अगम्य क्या करूँ बड़ाई, करत प्रणाम चरण शिर नाई ।

जो विदेश से बार शनीचर, मुड़कर आवेगा निज घर पर।

रहें सुखी शनि देव दुहाई, रक्षा रवि सुत रखें बनाई।

जो विदेश जावैं शनिवारा, गृह आवैं नहिं सह्रै दुखारा।

संकट देय शनीचर ताही, जेते दुखी होई मन माही ।

सोई रवि नन्दन कर जोरी, वन्दन करत मूढ़ मति थोरी ।

ब्रह्मा जगत बनावन हारा, विष्णु सबहिं नित देत अहारा ।

हैं त्रिशूलधारी त्रिपुरारी, विभू देव मूरति एक वारी ।

इकहोइ धारण करत शनि नित, वंदत सोई शनि को दमनचित ।

जो नर पाठ करै मन चित से, सो नर छूटै व्यथा अमित से ।

हौं सुपुत्र धन सन्तति बाढ़े, कलि काल कर जोड़े ठाढ़े।

पशु कुटुम्ब बांधन आदि से, भरो भवन रहिहैं नित सबसे ।

नाना भांति भोग सुख सारा, अन्त समय तजकर संसारा ।

पावै मुक्ति अमर पद भाई, जो नित शनि सम ध्यान लगाई ।

पढ़ें प्रात जो नाम शनि दस, रहैं शनीश्चर नित उसके बस ।

पीड़ा शनि की कबहुँ न होई, नित उठ ध्यान धेरै जो कोई।

जो यह पाठ करें चालीसा, होय सुख साखी जगदीशा ।

चालिस दिन नित पढ़ें सबेरे, पातक नाशै शनी घनेरे ।

रवि नन्दन की अस प्रभुताई, जगत मोहतम नाशै भाई।

याको पाठ करै जो कोई, सुख सम्पति की कमी न होई ।

निशिदिन ध्यान धेरै मनमाहीं, आधिव्याधि ढिंग आवै नाहीं ।

॥ दोहा ॥
पाठ शनीश्चर देव को, कीहौं ‘विमल’ तैयार ।

करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ॥

जो स्तुति दशरथ जी कियो, सम्मुख शनि निहार ।

सरस सुभाषा में वही, ललिता लिखें सुधार ॥

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