बाल समय रवि भक्ष लियो, तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो ।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी विनती तब, छाँडि दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ को. १
बालि की त्रास कपीस बसै, गिरिजात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि शाप दियो, तब चाहिये कौन विचार विचारो ।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो ॥ को. २
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौं हम सों जु, बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो ।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब, लाय सिया सुधि प्राण उबारो ॥ को. ३
रावण त्रास दई सिय को तब, राक्षस सों कहि सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय असोक सों आगिसु, दे प्रभु मुद्रिका सोक निवारो ॥ को. ४
बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सुत रावण मारो।
लै गृह वैद्य सुखेन समेत, तबै गिरि द्रोन सुबीर उपारो ।
आनि संजीवनि हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्राण उबारो ॥ को. ५
रावन युद्ध अजान कियो तब, नाग कि फांस सबै सिर डारो ।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो ।
आनि खगेश तबै हनुमान जु, बन्धन काटि के त्रास निवारो । को. ६
बंधु समेत जबै अहिरावण, लै रघुनाथ पाताल सिधारो ।
देविहिं पूजि भली विधि सों बलि, देऊ सबै मिलि मंत्र बिचारो।
जाय सहाय भयो तबही, अहिरावण सैन्य समेत संहारो ॥ को.७
काज किए बड़ देवन के तुम, वीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो ॥ को.८
॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर ।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर ॥