॥ दोहा ॥
विश्वनाथ को सुमिर मन, धर गणेश का ध्यान ।
भैरव चालीसा रचूं, कृपा करहु भगवान ॥
बटुकनाथ भैरव भजं, श्री काली के लाल ।
छीतरमल पर कर कृपा, काशी के कुतवाल ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय श्रीकाली के लाला, रहो दास पर सदा दयाला ।
भैरव भीषण भीम कपाली, क्रोधवन्त लोचन में लाली ।
कर त्रिशूल है कठिन कराला, गल में प्रभु मुण्डन की माला ।
कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला, पीकर मद रहता मतवाला ।
रुद्र बटुक भक्तन के संगी, प्रेत नाथ भूतेश भुजंगी ।
बैल तेश है नाम तुम्हारा, चक्र तुण्ड अमरेश पियारा ।
शेखरचंद्र कपाल बिराजे, स्वान सवारी पै प्रभु गाजे ।
शिव नकुलेश चण्ड हो स्वामी, बैजनाथ प्रभु नमो नमामी |
अश्वनाथ क्रोधेश बखाने, भैरों काल जगत ने जाने ।
गायत्री कहैं निमिष दिगम्बर, जगन्नाथ उन्नत आडम्बर ।
क्षेत्रपाल दसपाण कहाये, मंजुल उमानन्द कहलाये ।
चक्रनाथ भक्तन हितकारी, कहैं त्र्यम्बक सब नर नारी ।
संहारक सुनन्द तव नामा, करहु भक्त के पूरण कामा ।
नाथ पिशाचन के हो प्यारे, संकट मेटहु सकल हमारे ।
कृत्यायू सुन्दर आनन्दा, भक्त जनन के काटहु फन्दा।
कारण लम्ब आप भय भंजन, नमोनाथ जय जनमन रंजन ।
हो तुम देव त्रिलोचन नाथा, भक्त चरण में नावत माथा ।
त्वं अशतांग रुद्र के लाला, महाकाल कालों के काला ।
ताप विमोचन अरि दल नासा, भाल चन्द्रमा करहि प्रकाशा ।
श्वेत काल अरु लाल शरीरा, मस्तक मुकुट शीश पर चीरा ।
काली के लाला बलधारी, कहाँ तक शोभा कहूँ तुम्हारी ।
शंकर के अवतार कृपाला, रहो चकाचक पी मद प्याला ।
काशी के कुतवाल कहाओ, बटुक नाथ चेटक दिखलाओ।
रवि के दिन जन भोग लगावें, धूप दीप नैवेद्य चढ़ावें ।
दरशन करके भक्त सिहावें, दारुड़ा की धार पिलावें ।
मठ में सुन्दर लटकत झावा, सिद्ध कार्य कर भैरों बाबा ।
नाथ आपका यश नहीं थोड़ा, करमें सुभग सुशोभित कोड़ा।
कटि घूँघरा सुरीले बाजत, कंचनमय सिंहासन राजत ।
नर नारी सब तुमको ध्यावहिं मनवांछित इच्छाफल पावहिं ।
भोपा हैं आपके पुजारी, करें करें आरती सेवा भारी ।
भैरव भात आपका गाऊँ, बार बार पद शीश नवाऊँ ।
भैरव भात आपहि वारे छीजन धाये, ऐलादी ने रूदन मचाये ।
बहन त्यागि भाई कहाँ जावे, तो बिन को मोहि भात पिन्हावे ।
रोये बटुक नाथ करुणा कर, गये हिवारे मैं तुम जाकर ।
दुखित भई ऐलादी बाला, तब हर का सिंहासन हाला ।
समय ब्याह का जिस दिन आया, प्रभु ने तुमको तुरत पठाया।
विष्णु कही मत विलम्ब लगाओ, तीन दिवस को भैरव जाओ ।
दल पठान संग लेकर धाया, ऐलादी को भात पिन्हाया ।
पूरन आस बहन की कीनी, सुर्ख चुन्दरी सिर धर दीनी ।
भात भरा लौटे गुण ग्रामी, नमो नमामी अन्तर्यामी ।
॥ दोहा ॥
जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार ।
कृपा दास पर कीजिए, शंकर के अवतार ॥
जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार ।
उस घर सर्वानन्द हों, वैभव बढ़ें अपार ॥