आरती क्या होती है? (Aarti Kya Hai?)
आरती का महत्व, सम्पूर्ण विवरण एवं विधि सहित
आरती भारतीय धार्मिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो श्रद्धा, भक्ति और संपूर्ण सांस्कृतिकता का प्रतीक है। यह एक ऐसी विधि है, जिसमें भक्त भगवान के गुण, शील, चरित्र और लीलाओं का गुणगान करते हुए उन्हें दीप, धूप और संगीत के माध्यम से नमन करता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि ईश्वर से आध्यात्मिक जुड़ाव का एक माध्यम भी है।
आरती का अर्थ और परिभाषा (Aarti Meaning)
“आरती” शब्द संस्कृत के “आर्तिक” से लिया गया है, जिसका मूल अर्थ होता है—दुःख, पीड़ा या संकट को दूर करना। जब भक्त स्वयं को भगवान के चरणों में अर्पित करता है और उनकी स्तुति लयबद्ध रूप में करता है, तो उसे आरती कहा जाता है।
आरती के मुख्य उद्देश्य
- देवता की कृपा प्राप्त करना
- श्रद्धा और भक्ति को प्रगाढ़ करना
- आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाना
आरती कब की जाती है? (Aarti Kab Hoti Hai?)
आरती का समय स्थान और परंपराओं के अनुसार भिन्न हो सकता है।
मुख्य प्रकार की आरतियाँ
- प्रातः आरती – भगवान को जगाने के लिए (सूर्योदय के समय)।
- संध्या आरती – भगवान का आभार प्रकट करने के लिए (सूर्यास्त के समय)।
- शयन आरती – भगवान को विश्राम देने के लिए (रात्रि में)।
- विशेष अवसरों पर – त्यौहार, यज्ञ, हवन, कथा, विवाह, या शुभ कार्य की पूर्णता पर।
मंदिरों में दिन में 2 से 5 बार आरती की जाती है, जबकि घरों में प्रायः सुबह और संध्या के समय आरती करना शुभ माना जाता है।
आरती कौन कर सकता है? (Aarti Kon Kar Sakta Hai?)
आरती करने के लिए कोई विशेष योग्यता आवश्यक नहीं होती। इसे कोई भी भक्त कर सकता है, चाहे वह पुजारी, गृहस्थ, साधक या अन्य श्रद्धालु हो। उम्र, लिंग या सामाजिक स्थिति की कोई बाध्यता नहीं होती।
आरती करने से पहले नहाना आवश्यक है, यद्यपि तन के साथ मन भी पवित्र रखना चाहिए। आरती करने से पहले जब नहा लिया जाए तो किसी भी प्रकार की अभद्रता न करें और तत्पश्चात आरती करें।
आरती कहां की जाती है? (Aarti Kaha Ki Jati Hai?)
- मंदिरों में: जहाँ प्रतिदिन प्रातः और संध्या आरती की जाती है।
- गृहस्थ पूजा में: घर के पूजा स्थल पर भगवान की मूर्ति या चित्र के समक्ष।
- तीर्थ स्थलों पर: हरिद्वार, वाराणसी, द्वारका, उज्जैन आदि।
- विशेष आयोजन में: यज्ञ, हवन, कथा, सत्संग, कीर्तन आदि में।
क्यों की जाती है आरती? (Aarti Kyon Karte Hai?)
आरती करने का मुख्य उद्देश्य ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना और आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करना है।
आरती से होने वाले लाभ (Aarti Benefits)
- मानसिक शांति और ध्यान केंद्रित करने की शक्ति बढ़ती है।
- नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- भक्त और भगवान के बीच आध्यात्मिक संबंध प्रगाढ़ होता है।
- वातावरण पवित्र और दिव्य बनता है।
आरती किसी भी देवी-देवता की की जा सकती है। कुछ प्रमुख आरतियाँ इस प्रकार हैं – भगवान की, कुलदेवी एवं कुलदेवता की, देवी-देवता की, ग्रंथों की, संत-महात्माओं की, ब्रह्मचारियों की, पवित्र नदी, पहाड़, पेड़ आदि की, गौ, तुलसी, शालिग्राम आदि की, और नवीन वस्तुओं की (जिनमें लक्ष्मी एवं भगवत भाव का दर्शन किया जाता है)
आरती करने की विधि (Aarti Karne Ki Vidhi)
- पूजा स्थल की शुद्धि: स्थान को स्वच्छ करें, दीप, धूप, फूल और घंटी तैयार करें।
- दीप प्रज्वलन: दीपक को घी या तेल से जलाएं और भगवान के समक्ष रखें।
- घंटी और शंख बजाना: आरती का शुभारंभ करें।
- दीप घुमाना: भगवान की मूर्ति के चारों ओर सिर, हृदय और चरणों के पास तीन बार घुमाएं।
- आरती गान: भक्तजन ताली बजाते हुए आरती गाएं।
- वाद्य यंत्रों का प्रयोग: घंटी, करताल, मृदंग, झांझ आदि बजाएं।
- अंतिम चरण: “हरि ओम” या “जयकारा” लगाकर आरती पूर्ण करें।
- आशीर्वाद और प्रसाद: दीपक की लौ से भक्तजन आशीर्वाद लें और प्रसाद ग्रहण करें।
भारत की सबसे प्रसिद्ध आरतियाँ (Famous Aartis In India)
- ॐ जय जगदीश हरे – भगवान विष्णु की आरती
- जय गणेश, जय गणेश देवा – गणपति बप्पा की आरती
- जय शिव ओंकारा – भगवान शिव की आरती
- आरती कीजै हनुमान लला की – हनुमान जी की आरती
- अम्बे तू है जगदंबे काली – माँ दुर्गा की आरती
- गंगा मैया की आरती – तीर्थ स्थलों पर गाई जाने वाली आरती
आरती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि भक्त के मन में भगवान के प्रति प्रेम, भक्ति और आस्था को गहरा करने का एक साधन है। यह श्रद्धा, समर्पण और आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाती है। इससे मन और वातावरण दोनों शुद्ध हो जाते हैं। भारतीय संस्कृति में आरती का विशेष स्थान है और यह हमारी आध्यात्मिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण अंग है।
इसलिए, जब भी आरती करें, पूरे मन और श्रद्धा के साथ करें ताकि उसकी दिव्यता और ऊर्जा का संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके।