श्री विश्वकर्मा चालीसा | Shri Vishwakarma Chalisa

॥ दोहा ॥

विनय करौं कर जोड़कर मन वचन कर्म संभारि ।

मोर मनोरथ पूर्ण कर विश्वकर्मा दुष्टारि ॥

॥ चौपाई ॥

विश्वकर्मा तव नाम अनूपा, पावन सुखद मनन अनरूपा ।

सुन्दर सुयश भुवन दशचारी, नित प्रति गावत गुण नरनारी ।

शारद शेष महेश भवानी, कवि कोविद गुण ग्राहक ज्ञानी ।

आगम निगम पुराण महाना, गुणातीत गुणवन्त सयाना ।

जग महँ जे परमारथ वादी, धर्म धुरन्धर शुभ सनकादि ।

नित नित गुण यश गावत तेरे, धन्य-धन्य विश्वकर्मा मेरे ।

आदि सृष्टि महँ तू अविनाशी, मोक्ष धाम तजि आयो सुपासी ।

जग महँ प्रथम लीक शुभ जाकी, भुवन चारि दश कीर्ति कला की ।

ब्रह्मचारी आदित्य भयो जब वेद पारंगत ऋषि भयो तब ।

दर्शन शास्त्र अरु विज्ञ पुराना, कीर्ति कला इतिहास सुजाना ।

तुम आदि विश्वकर्मा कहलायो, चौदह विद्या भू पर फैलायो ।

लोह काष्ठ अरु ताम्र सुवर्णा, शिला शिल्प जो पंचक वर्णा ।

दे शिक्षा दुख दारिद्र नाश्यो, सुख समृद्धि जगमहँ परकाश्यो ।

सनकादिक ऋषि शिष्य तुम्हारे, ब्रह्मादिक जै मुनीश पुकारे।

जगत गुरु इस हेतु भये तुम, तम अज्ञान समूह हने तुम ।

दिव्य अलौकिक गुण जाके वर, विघ्न विनाशन भय टारन कर ।

सृष्टि करन हित नाम तुम्हारा, ब्रह्मा विश्वकर्मा भय धारा ।

विष्णु अलौकिक जगरक्षक सम, शिवकल्याणदायक अति अनुपम ।

नमो नमो विश्वकर्मा देवा, सेवत सुलभ मनोरथ देवा ।

देव दनुज किन्नर गन्धर्वा, प्रणवत युगल चरण पर सर्वा ।

अविचल भक्ति हृदय बस जाके, चार पदारथ करतल जाके ।

सेवत तोहि भुवन दश चारी, पावन चरण भवोभव कारी ।

विश्वकर्मा देवन कर देवा, सेवत सुलभ अलौकिक मेवा ।

लौकिक कीर्ति कला भण्डारा, दाता त्रिभुवन यश विस्तारा।

भुवन पुत्र विश्वकर्मा तनुधरि, वेद अथर्वण तत्व मनन करि ।

अथर्ववेद अरु शिल्प शास्त्र का, धनुर्वेद सब कृत्य आपका।

जब जब विपति बड़ी देवन पर, कष्ट हन्यो प्रभु कला सेवन कर ।

विष्णु चक्र अरु ब्रह्म कमण्डल, रुद्र शूल सब रच्यो भूमण्डल ।

इन्द्र धनुष अरु धनुष पिनाका, पुष्पक यान अलौकिक चाका।

वायुयान मय उड़न खटोले, विद्युत कला तंत्र सब खोले ।

सूर्य चन्द्र नवग्रह दिग्पाला, लोक लोकान्तर व्योम पताला ।

अग्नि वायु क्षिति जल अकाशा, आविष्कार सकल परकाशा ।

मनु मय त्वष्टा शिल्पी महाना, देवागम मुनि पंथ सुजाना ।

लोक काष्ठ, शिल ताम्र सुकर्मा, स्वर्णकार मय पंचक धर्मा ।

शिव दधीचि हरिश्चन्द्र भुआरा, कृत युग शिक्षा पालेऊ सारा ।

परशुराम, नल, नील, सुचेता, रावण, राम शिष्य सब त्रेता ।

द्वापर द्रोणाचार्य हुलासा, विश्वकर्मा कुल कीन्ह प्रकाशा ।

मयकृत शिल्प युधिष्ठिर पायेऊ, विश्वकर्मा चरणन चित ध्यायेऊ ।

नाना विधि तिलस्मी करि लेखा, विक्रम पुतली दृश्य अलेखा ।

वर्णातीत अकथ गुण सारा, नमो नमो भय टारन हारा।

॥ दोहा ॥

दिव्य ज्योति दिव्यांश प्रभु, दिव्य ज्ञान प्रकाश ।

दिव्य दृष्टि तिहुँ कालमहँ विश्वकर्मा प्रभास ॥

विनय करो करि जोरि, युग पावन सुयश तुम्हार ।

धारि हिय भावत रहे होय कृपा उद्गार ॥

॥ छन्द ॥

जे नर सप्रेम विराग श्रद्धा सहित पढ़िहहि सुनि है।

विश्वास करि चालीसा चौपाई मनन करि गुनि है ॥

भव फंद विघ्नों से उसे प्रभु विश्वकर्मा दूर कर ।

मोक्ष सुख देंगे अवश्य ही कष्ट विपदा चूर कर ॥

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